गयी रात 
अमावस के बाद 
हौले से मुस्कुराते हुए
चाँद की रात थी 
छिटके सितारे भी सुलग रहे थे 
चांदनी धुआं-धुआं थी  
एक अहसास कि ..
जैसे भटकती किसी प्यास को पानी मिल जाए 
भूले से किसी गीत को मानी मिल जाए.
वो तड़प जिसके खोने की भी न थी हमको खबर 
यूं ही किसी मोड़ पे  दामन सी लिपट जाए 
तो क्योंकर न इक खूबसूरत सी कहानी बन जाए ?
 
 

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