न दोस्तों में करते हैं ,न दुश्मनों में करते हैंउनकी गिनती अब हम बर्फ़ाब अना की पथराई हुई लकीरों में करते हैं।
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माना की अक्सर दोस्ती के लिबास में अगियार मिले
मगर रहजन इत्तेफाक़न कई दिलदार मिले।
कभी दो मिले ,कभी चार मिले -
भीड़ में कुछ तो अपने यार मिले।
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...bahut sunder likha hai Varsha!
ReplyDeletePlease try to rectify the Hindi typos for an even better effect:)
...and please consider me as"भीड़ में कुछ तो अपने"
regards...
thats a nice thought : shukriya!
ReplyDeleteGreat!!!
ReplyDeleteBheed mein kuchh toh apne.... :-)
bas yehi ek khayal roshni dikhata hai.