कभी कभी लगता है :
मैं सिर्फ एक पहिया हूँ -
बस मील मापती रहती हूँ
और धूल फाँकती रहती हूँ
हर मंज़िल मुझसे बेखबर
है फिरना मुझ को दर-ब -दर
उनींदी आँखें लिए जागती रहती हूँ
बस पड़ाव ताकती रहती हूँ
मेरे चलने से ही सब कुछ चलता है
फिर भी , बस ठहराव की मोहलत मांगती रहती हूँ।