कई रोज़, किसी काले बादल को खोल कर गटागट पीने को ,
या आसमान की नीली चादर ओढ़ कर सोने को जी चाहता है।
उपले ,बाड़े ,फूस ,खेत सूंघने का
या गीली मिट्टी में खेलने -लोटने का जी चाहता है।
लक्ष्मी गाय ,मोती कुत्ता , मोटा बिल्ला सब पर प्यार जताने को ,
या बिन नाम की ढीठ ,शोर मचाती मुर्गियों पर झूठ -मूठ गुस्साने को जी चाहता है।
किसी ऊंचे से टीले पर चढ़ कर बोल लगाने का -
जो छूट गया है - उसे वापस बुलाने का जी चाहता है।
आ तो गयी मैं सधे क़दमों से बहुत दूर तक
पर अचानक मुड़ कर दौड़ जाने का जी चाहता है।
जानती हूँ , कि जिस गोबर लिपे आँगन में मैंने
इत्मीनान की चारपाई बिछाई थी :
वह अब बस सपना है -
फिर भी जाने ये दिल क्या -क्या चाहता है।