गयी रात
अमावस के बाद
हौले से मुस्कुराते हुए
चाँद की रात थी
छिटके सितारे भी सुलग रहे थे
चांदनी धुआं-धुआं थी
एक अहसास कि ..
जैसे भटकती किसी प्यास को पानी मिल जाए
भूले से किसी गीत को मानी मिल जाए.
वो तड़प जिसके खोने की भी न थी हमको खबर
यूं ही किसी मोड़ पे दामन सी लिपट जाए
तो क्योंकर न इक खूबसूरत सी कहानी बन जाए ?
0 comments:
Post a Comment