सर-सर, फर-फर ,ढम-ढम ,ठक-ठुक
अब तक सूरज जीत रहा था,आज तूफ़ान की बारी है.
गुबार ,रेत, करकट को उठा
घुमा- घुमा , पटक के गिरा .
कल तक हाथों में हाथ डाले जो हवा
शाखों को प्यार से झुलाती थी
गुस्से में उनसे लड़ती है
फड़कती है ,अकड़ती है.
गहराते है बादल ,गिरती है बूँदें
हंटर की तरह बिजली कड़कती है.
ये तूफ़ान किसी अल्हड़ का फूटा गुस्सा है
भड़क के, झिंझोड़ के , तोड़-फोड़ के भिगोयेगा .
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