Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

July 1, 2011

भोर से पहले .

जब सुबह  की  आमद  होने  को  हो 
रात  कुछ थमी सी हो
वक़्त के उस खामोश पहर में 
अहसास होता है खुदा का 
लगता है कि  मैं  कुछ भी नहीं 
बस एक अदना सा हिस्सा हूँ 
उसकी  लाजवाब खुदाई का.
दिल थाम के ,कभी ,
तो कभी coffee का कप थाम के -
सुबह होने से पहले ,खिड़की पे खड़े ,
ये अहसास होता है.
और खिड़की पर बिछी मालती की खुशबू 
कहती है हाँ , हाँ कहता है 
रुखसत की तैयारी  करता 
हंसिये की धार सा चाँद 
अपना  दूधिया बिछौना  लपेटते हुए,
सुबह के तारे को अलविदा कहते हुए.
रात की सांस धीमे -धीमे जब जाने को हो
लेकिन सूरज को देर अभी आने में हो.