Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

June 26, 2011

मेरे घर की सड़क .


मेरे घर तक जाती थी 
पुराने पेड़ों से ढंकी इक सड़क 
दोनों ओर आती थी कभी अमराइयों से 
पकते  आमों की महक .
और दीखता था  कभी 
धानी चादर वाले खेतों में लहकता कनक.
हर बूढ़े पेड़ के नीचे थे 
लोगों के छोटे से बसेरे 
और मामूली सी चीज़ों की मामूली सी दुकान
फूल वाले,सब्जी वाले ,फल वाले -
पंचर भाग्य हो या साइकल उसे ठीक करने वाले   
तंग हो भी तो ,संग-दिल नहीं थी वो सड़क -
दोस्ताने भरे चेहरों की कड़ी थी वो सड़क 

पर अब ज़िन्दगी दोस्ताना नहीं रफ़्तार मांगती है 
साइकल और स्कूटर नहीं कार मांगती है 
हर वक़्त खरीदने के लिए बहुत सारा सामान मांगती है.
शायद इसीलिए हो गयी है मेरे घर की सड़क 
अब हो गयी है इक अनजान ,बेजान सी सड़क 
पेड़ों से,दोस्तों से , हमराहियों से वीरान सी सड़क.
है वो अब बहुत चौड़ी,आलीशान सी सड़क 
शीशे के महल-नुमा malls पे मेहरबान सी सड़क.

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