कल कई दिन बाद सूरज खुल के मुस्कुराया
तो दिल गुन-गुनाया ,
ये ख्याल आया-
यूं तो जमे हुए दिल भी धड़कते हैं,
पंछी धुंध में भी पर फड़कते हैं .,
फ़िर भी थोड़ी तपिश हर रोज़
life में कितनी ज़रूरी है .
उगने के लिए,
बढ़ने के लिए,
खिलने के लिए,
खिल-खिलाने के लिए .
नहीं तो बेवजह लगता है कुछ कमी सी है
किसी से कोई शिकवा भी नहीं,पर मौसम में ग़मी सी है.
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