January 6, 2011
कोहरा.
पेड़ लगे हैं सोये-सोये
दूर ख्यालों में खोये-खोये.
हवा नम है - उजाले कम हैं.
एक झीनी चादर मलमल की-
थोड़ी भीगी-भीगी सी.
डली है हर ओर.
ओढ़ के झांकें
ओट से ताकें
बदल के रूप
छिपे -छिपाएं.
खेलें सौ-सौ खेल.
कभी बुत
कभी भूत
कभी बस धुआं-धुआं.
धुंध का गहरा कुआं.
मुंह छिपा कर ज्यों पूछें बच्चे
- बोल माँ-बूझ मैं कौन?
मैं कहाँ ?
-कोहरे में,
मौसम की मासूमियत-
दिलकश भी है,
दिलफरेब भी,
जानलेवा भी.
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