Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

April 11, 2012

दिल्ली - I

कभी कभी लगता है की ये शहर इंसानों का नहीं:
गाड़ियों का शहर है

सर्र-सर्र , साँय -साँय दौड़ती
या भड- भडाती , धुआं उडाती गाड़ियाँ
हदे- निगाह  तक उमड़ती उलझती धूल उड़ाती गाड़ियाँ

कहीं रंग-बिरंगी बत्तियों और सायरनों तले बौखलाती इतराती गाड़ियाँ
कहीं  AC  के रूमानी सुकून में झूमती-झमझमाती गाड़ियाँ .
कहीं  भीड़ और गर्म हवा में बल -बलाती गाड़ियाँ  

यहाँ गाड़ियाँ सिर्फ गाड़ियाँ नहीं : पहचान हैं 
इस शहर के  बे-चेहरा लोगों के वजूद का निशान  

क्यों कि यहाँ  कोई किसी को नहीं पूछता
इसलिए सब अपनी औकात को काँधे पे  ढो कर चलते हैं
सोचते  है कि वोह  गाड़ी पे हैं : पाते हैं कि गाड़ी उनपे हैं

गाड़ियाँ :
भागते रहने पे मजबूर नस्ल का 
धोखे से भरा इत्मीनान है ..