कुछ भोर की ठंडक
या हरी दूब नम सी -
बारिश की बूँदें हों ,
चांदनी मद्धम सी.
शबनम के कतरों वाले
हों अधखिले गुलाब ,
नहीं तो ,पत्थर में से फूटे
मीठे पानी का झरना कोई .
माथे के बल
बने होठों की हंसी ...
कुछ इंतज़ाम करो -
रेत की आंधी जैसी ये नाराज़गी
कभी आँख सूजाती है ,
कभी दिल जलाती है.
बहुत सताती है.
इसे तमाम करो.
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