चुप-चाप क्या -क्या बोल जाते हैं।
हँस के कहते हैं -
चाहे कितनी सड़कें नाप लो
सभी मकतल और मकबरों तक ही जाती हैं।
बचता कोई नहीं:
न सल्तनत न बादशाही ; न सोना ,न चांदी :
बस रह जाते है -
कुछ अनदेखे -कुछ अनबूझे ,बिखरे से पत्थर
जिनपे नाम उकेरने को सभी बेताब रहते हैं
पर जिनकी कहानी सुनने की अब फुर्सत किसे है ...
profound...touching...well crafted!
ReplyDeletethanks !
ReplyDeleteNeat.
ReplyDeleteI know you must have seen the light show at old fort. If you haven't try it any day. In summers it starts at 7. Beautiful and about history of the city.
oh yes ! it is : i loved it..
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