डर -
मैं इस जुमले से बहुत घबराती थी.
अंधेरों में मिलती थी-
तो सकुचाती थी .
पर आज जो दिन की खुली धूप में मिली -
तो सोचा,
जो नाखून और दांत मेरी बंद आँखों ने , डर पे सजाये थे ,
वो तो मेरी ही देन थे .
मैं ही उसे पाल-पोस कर बड़ा कर रही थी.
फिर अपने बनाये खिलौने से डर रही थी .
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