कुछ दोस्त मेरे मुझे सैर पर ले जाते हैं
कभी खिड़की तो कभी चशमा बन
बीते और आने वाले कल से मुलाकात कराते हैं.
कभी गप्पें तो कभी किस्से सुनाते हैं.
अपनी हरकत से यूं ही हंसाते- बहलाते हैं.
कुछ दोस्त ज़रा संजीदा हैं.
वोह दिल की गहराई में उतर
कुछ ऐसा कह देते हैं
जो मन ने जाना था यकीनन -पर बोलों पर आ न सका.
वोह दिल में कभी आह, तो कभी सिरहन जगाते हैं.
कुछ मददगार हैं मेरे -
हर मुश्किल का हल बताते हैं.
अमल के रास्ते और रास्तों के पड़ाव सुझाते हैं.
मैं कहीं भी निकल जाऊं चाहे, इन दोस्तों का साथ
रहता है मेरे साथ -साथ.
ये दोस्त मेरे सुख-दुःख के साथी हैं.
चुप-चाप मेरे जीवन में गुनगुनाते हैं.
कभी बरकत की तरह,कभी रहमत की तरह ;
कभी वुज़ू की तरह,कभी आँचल की तरह -
ये मुझ में उतर जाते हैं.
लोग कहते हैं, बस किताबें ही तो हैं.
0 comments:
Post a Comment