गोल गुम्बद ,झरोखे जालीदार
तस्वीरों से सजे दरो-दीवार .
दीवारों में बसी बीती कहानियाँ
घुंघरूओं की सदा ,रानियों की निशानियाँ .
कहीं मीनाकारी के नीले टुकड़े
कहीं शीशे से उकेरे फूल और पत्ते .
पुराने बागों के पिंजर
ऊंची सीढ़ियों के मंदिर
बेतवा किनारे खड़े हैं ये खंडहर ग़मगीन
यहाँ थिरकी थी कभी राय परवीन.
अब तो न जशन है, न रक्स है
बस थमे हुए वक़्त का इक उम्दा अक्स है.
October 27, 2010
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