Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

August 17, 2010

ग़ुस्सा.

कैसा अंधड़ है ये 
जो सब्ज़ शाख आ रही है रस्ते में
रौंदता चला जा रहा है 
जमे पांव पेड़ों के उखाड़ता चला जा रहा है
रखी थी कितने तरतीब से चीज़ें 
सभी के करीने तोड़ता चला जा रहा है 

कैसी सख्त तेज़ है इसकी आवाज़ 
कैसा तैश-तल्ख्दार है इसका अंदाज़
फूलों कि पंखुडियां मसोसता चला जा रहा है 
धूलों को राह से बटोरता चला जा रहा है 
ग़ुस्सा इतना ठीक नहीं.
खुद तबाह हो कर तबाही किये जा रहा है .

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