Words can create magic and I want to get lost in them for some part of each day.

April 8, 2011

मैंने उसे देखा ...


रेल की खिड़की, सुबह के सात बजे :
अधपकी कनक के खेत,
ओढ़े कोहरे की हलकी चादर .
घनी डालों वाले नाटे पेड़ 
बिखरे हुए थे इधर-उधर.
सब अनमने, अलसाए ,
कुछ जागे,कुछ सोये से .
बादलों का कफ़स तोड़ के 
सूरज तभी निकला और -
नूर का एक सुनहरा जाम छलका दिया .
कोहरे को चीरती हुई रौशनी का वो मंज़र :
खुदा नहीं, तो क्या था ?

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